Vodafone Idea: नमस्कार दोस्तों। टेलीकॉम कंपनी vodafone idea को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि कंपनी को लगे इस झटके के पिछे बड़ा वजह सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला बताया जा रहा है। जहाँ कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनीयों के एजीआर बकाया को लेकर क्युरेटीव याचिकाएं खारिज कर दिया है। वहीं कोर्ट के इस फैसले का असर इनके सेयरों पर भी देखने को मिला है। जहाँ बिते दिन यानि 19 सितंबर को vodafone idea के शेयरों में वर्ष 2022 के बाद अब तक कि सबसे बड़ी गिरावट आइ है। बता दें कि गुरूवार 19 सितंबर को वोडाफोन-आइडिया के शेयर तकरीबन 20% लुढ़क गयें। वहीं कंपनी के इस गिरावट के कारण बिते कारोबारी दिन पर वोडाफोन आइडिया के शेयर 200 दिन के मूविंग एवरेज से नीचे बंद हुए हैं। वहीं वोडाफोन आइडिया के स्टॉक अब अपने हालिया पीक 19.18 रुपये से तकरीबन आधे दाम पर पहुंच चुके है।
वहीं अब आगे बात करें कि वोडाफोन आइडिया के स्टॉक में इस गिरावट के दौरान निवेशकों को क्या रणनीति अपनाना चाहिए तो बता दें किट्रेडबुल्स के सच्चिदानंद उत्तेकर का कहना है कि ये स्टॉक 13 रुपये के 200-WEMA सपोर्ट लेवल से नीचे चला गया है। और नवंबर 2023 से कंपनी ने यह लेवल बनाए रखा था। उन्होंने कहा कि इस गिरावट से ये संकेत मिल रहा है कि निकट भविष्य में, मौजूदा गिरावट जारी रह सकता है। यह गिरावट अचानक हुई है और इसके साथ वॉल्यूम में भी बढ़ोतरी है। लिहाजा, आने वाले हफ्तों में इसमें और गिरावट हो सकती है और यह गिरकर 7 रुपये पर पहुंच सकता है।’ सैंक्टम वेल्थ के आदित्य अग्रवाल का कहना है कि वोडाफोन आइडिया ने हाई वॉल्यूम के साथ 12 रुपये का अपना अहम सपोर्ट लेवल तोड़ दिया है। उनके मुताबिक, शॉर्ट टू मीडियम टर्म में कंपनी का स्टॉक नेगेटिव ट्रेंड के साथ कारोबार कर सकता है और एक और बिकवाली के बाद आखिरकार यह स्टॉक 9.2 रुपये से 8.6 रुपये के लेवल तक पहुंच सकता है। उनका कहना है कि अगर कंपनी का स्टॉक गिरावट के बाद फिर से 12-12.4 रुपये पर पहुंचता है, तो यह लॉन्ग पोजिशन वालों के लिए शेयर से बाहर निकलने का मौका होगा। उन्होंने कहा कि, इस समय वोडाफोन आइडिया का चार्ट काफी बेयरिश है। ऐसे में कंपनी के मौजूदा बेयरिश ट्रेंड को देखते हुए हम निवेशकों को इस शेयर से बचने की सलाह देते हैं, क्योंकि इसमें तेज गिरावट का ट्रेंड बरकरार है।
क्या है Vodafone Idea का पुरा मामला।
बता दें कि AGR का पुरा अर्थ एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू होता है। ये मिनिस्ट्री ऑफ कम्युनिकेशन के दूरसंचार विभाग की ओर से, टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजर्स और लाइसेंस फीस होता है। बता दें कि सरकार और टेलीकॉम ऑपरेटर्स के बीच रेवेन्यू शेयरिंग का ये एक मैकेनिज्म है। जिसमें ऑपरेटर्स को टेलीकॉम डिपार्टमेंट को एक तय लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम युसेज चार्ज, भुगतान करना होता है। बता दें कि डॉट फीस की गणना एजीआर के प्रतिशत के रूप में करता है। हालांकि एजीआर की परिभाषा हमेशा से विवादों में रही है। दरसल टेलीकॉम ऑपरेटर्स ने कई न्यायिक मंचों के सामने यह तर्क दिया है कि परिभाषा में केवल मुख्य राजस्व शामिल होना चाहिए, जबकि विभाग ने तर्क दिया कि इसमें नॉन टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली कमाई को भी शामिल किया जाना चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 के अक्टूबर में ये फैसला सुनाया था कि एजीआर की गणना करते समय नॉन कोर रेवेन्यू को शामिल किया जाना चाहिए, जिससे एजीआर की परिभाषा पर मोबाइल ऑपरेटर और सरकार के बीच 14 साल की लंबी कानूनी लड़ाई खत्म हुई थी। लेकिन साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हजारों करोड़ रुपए के बकाए और जुर्माने से जूझ रही टेलीकॉम इंडस्ट्री को तगड़ा झटका दे दिया था। इससे भारतीय एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसे टेलिकॉम कंपनीयों कि देनदारी बढकर ₹90000 करोड़ से ज्यादा हो गइ थी। जिसके बाद टेलिकॉम कंपनीयों ने अपने बकाए के भुगतान के लिए और समय दिए जाने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जिसपर साल 2020 के सितंबर महिने में सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्षों में बकाय के भुगतान की इजाजत दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने vodafone idea सहित भारतीय एयरटेल (Bharti Airtel) द्वारा दाखिल याचिका को 23 जुलाई 2021 को खारिज कर दिया था। इस याचिका में कहा गया था कि दुर संचार विभाग ने इन कंपनीयों के AGR बकाया में बड़ी गलती कि है, जिसमें सुधार किया जाना चाहिए। जिसके बाद फिर से संकट में फंसी हुई vodafone idea ने AGR मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पटीसन दाखिल किया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से रद्द कर दिया है।