Abbas Ansari Hate Speech Case: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया जब मऊ कोर्ट ने बहुचर्चित Abbas Ansari hate speech case ( नफरत भरा भाषण) में सख्त रुख अपनाते हुए सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी को दोषी ठहराया। यह फैसला न केवल न्यायिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि आने वाले चुनावों के लिए भी एक बड़ी चेतावनी माना जा रहा है।
यह मामला वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से जुड़ा है। मऊ सदर सीट से चुनाव लड़ते समय, अब्बास अंसारी ने पहाड़पुर मैदान में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कथित रूप से ऐसा बयान दिया, जिसे प्रशासन के लिए धमकी भरा माना गया।
अब्बास अंसारी का यह बयान बना कानूनी मुसीबत
उन्होंने कहा था कि “चुनाव खत्म होने के बाद प्रशासन से हिसाब-किताब किया जाएगा और सबक सिखाया जाएगा।” यह बयान तेजी से वायरल हुआ और विवादों में आ गया।
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FIR से लेकर कोर्ट के फैसले तक
इस विवादास्पद भाषण के बाद, शहर कोतवाली में तत्कालीन एसआई गंगाराम बिंद की तहरीर पर FIR दर्ज की गई। मुकदमे में अब्बास अंसारी के साथ उनके कुछ समर्थकों को भी आरोपी बनाया गया।
सुनवाई के दौरान अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना। इसके बाद मऊ कोर्ट ने 31 मई को अंतिम फैसला सुनाते हुए अब्बास अंसारी को दोषी घोषित किया।
सियासी गलियारों में हलचल, फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रिया
Abbas Ansari hate speech case को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। एक तरफ विपक्ष इस फैसले को लोकतंत्र की जीत मान रहा है, वहीं दूसरी ओर समर्थकों में मायूसी साफ देखी जा रही है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला एक कड़ा संदेश है— कि चुनावी मंच पर बोले गए शब्दों की भी जवाब देही तय होगी। यह निर्णय आने वाले चुनावों में नेताओं की भाषा और रवैये को प्रभावित कर सकता है।
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Abbas Ansari hate speech case में दोषी ठहराए जाने के बाद अब सबकी नजर मऊ कोर्ट की अगली सुनवाई पर है, जहां यह तय होगा कि उन्हें किस प्रकार की सजा दी जाएगी। भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत, ऐसे मामलों में जेल और जुर्माना दोनों की संभावना होती है।
अब्बास अंसारी के पास ऊपरी अदालत में अपील करने का विकल्प है, लेकिन वे इसपर आगे क्या रुख अपनाते हैं, यह देखना अहम होगा। इस फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि कानून सबके लिए समान है और लोकतंत्र में किसी को भी विशेष अधिकार नहीं मिल सकता।
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