Buxar Balgrah Case: बक्सर बालगृह में दिव्यांग किशोरों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार ने एक बार फिर समाज की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। इस बेहद संवेदनशील मामले की जांच को लेकर बक्सर न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है। पोक्सो की विशेष अदालत ने नगर थाना कांड संख्या 671/2023 की जांच प्रक्रिया को “असंतोषजनक” करार देते हुए प्रशासनिक लापरवाही पर तीखी टिप्पणी की है।
बच्चों की टूटी चुप्पी, तो सामने आई दरिंदगी की कहानी
बक्सर बालगृह का यह मामला साल 2023 के अक्टूबर महीने में सामने आया, जब बक्सर के सरकारी बालगृह में रह रहे कुछ दिव्यांग किशोरों ने वहां की अधीक्षिका रेवती कुमारी पर गंभीर आरोप लगाए। बच्चों का कहना था कि उन्हें लंबे समय से शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था।
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आरोपों के मुताबिक अधीक्षिका किशोरों के गुप्तांगों में मिर्च पाउडर डालकर उन्हें यातनाएं देती थीं। जब बच्चों की पीड़ा असहनीय हो गई, तो उन्होंने साहस जुटाकर यह बात बाल कल्याण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष मदन सिंह को बताई। यहीं से इस मामले ने तूल पकड़ा और यह खुलासा पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया।
बाल संरक्षण प्रणाली पर उठे सवाल, सहायक निदेशक पर भी गंभीर आरोप
बच्चों ने केवल अधीक्षिका पर ही नहीं, बल्कि बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक पर भी चुप्पी साधने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि अधिकारी को पूरी जानकारी थी, फिर भी उन्होंने कार्रवाई की बजाय चुप्पी ओढ़े रखी। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या सिस्टम के भीतर ही संवेदना मर चुकी है?
Buxar Balgrah Case: एक साल की जांच और फिर भी न्याय से दूरी क्यों?
मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी ने तीन सदस्यीय जांच टीम का गठन किया और रिपोर्ट जल्द देने का आदेश भी दिया। लेकिन एक साल से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी न तो जांच पूरी हुई और न ही दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की गई। इससे पीड़ितों और उनके परिवारों में गहरी निराशा है।
विशेष पोक्सो कोर्ट की टिप्पणी ने हिला दी शासन व्यवस्था
पोक्सो विशेष अदालत ने साफ कहा कि इतना गंभीर और संवेदनशील मामला होने के बावजूद प्रशासन की ढिलाई बेहद चिंताजनक है। अदालत का मानना है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह केवल पीड़ितों के साथ अन्याय नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गलत संदेश होगा। बक्सर न्यायालय की सख्ती के बाद अब जिला प्रशासन और जांच एजेंसियों पर तेज कार्रवाई का दबाव बन गया है।
सुरक्षा की जगह बालगृह बना यातना केंद्र?
यह मामला केवल बक्सर बालगृह (Buxar shelter home) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी पूरी सामाजिक और संस्थागत संवेदनशीलता की परीक्षा है। जहां बालगृह बच्चों के लिए सुरक्षा, परवरिश और सहारा बनने चाहिए, वहीं यह स्थान अब दर्द, डर और चुप्पी का प्रतीक बनता जा रहा है।
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इतना बड़ा अमानवीय कृत्य सामने आने के बावजूद अगर केवल दोषियों को सज़ा देकर मामले को निपटा दिया जाए, तो यह न्याय अधूरा होगा। इन दिव्यांग बच्चों के लिए मानसिक पुनर्वास, सुरक्षित वातावरण और संवेदनशील समाज की जरूरत है। हर बालगृह को एक संरक्षित आश्रय बनाने की जिम्मेदारी हम सभी की है।
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