Buxar to Prayagraj Kumbh Yatra: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में शामिल होने के लिए श्रद्धालु हरसंभव तरीके अपना रहे हैं। कुछ लोग पैदल, कुछ ट्रेन और बस से तो कुछ निजी वाहनों से कुंभ नगरी पहुंच रहे हैं। लेकिन इस बार बिहार और यूपी के 7 लोगों ने एक अनोखा तरीका अपनाया। इन्हें सड़क पर भारी जाम और ट्रेनों में भीड़ का सामना न करना पड़े, इसके लिए इन्होंने मोटरबोट से 275 किलोमीटर जलमार्ग तय किया और संगम में पुण्य की डुबकी लगाने पहुंचे। उनके इस अनूठे Kumbh Yatra की चर्चा अब पूरे इलाके में हो रही है।
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Buxar to Prayagraj Kumbh Yatra: बक्सर से संगम तक गंगा नदी में 84 घंटे की अद्भुत यात्रा
बिहार के बक्सर जिले के कमहरिया गांव से 11 फरवरी की सुबह 10 बजे शुरू हुई यह रोमांचक मोटरबोट यात्रा 84 घंटे में पूरी हुई। सफर के दौरान यात्री गंगा नदी के खूबसूरत किनारों से होते हुए उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, वाराणसी और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों से गुजरे। करीब 550 किलोमीटर की दूरी तय कर यह यात्रा 12 फरवरी की रात 1 बजे प्रयागराज के संगम तट पर समाप्त हुई। इस दौरान यात्रियों ने गंगा की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक घाटों और आध्यात्मिक वातावरण का आनंद लिया, जो इसे एक यादगार अनुभव बना गया।
ट्रेनों में जगह नहीं, सड़कों पर महाजाम, फिर बना यह खास प्लान
8 और 9 फरवरी को प्रयागराज जाने वाले हर रास्ते पर भारी जाम की खबरें आ रही थीं। ट्रेनों में सीटें फुल थीं और श्रद्धालु घंटों गाड़ियों में फंसे थे। ऐसे में बिहार के बक्सर जिले और यूपी के बलिया जिले के 7 लोगों ने जलमार्ग से Buxar to Prayagraj Kumbh Yatra का निर्णय लिया।
पूरी यात्रा में खर्च हुए 20 हजार रुपए
Buxar to Prayagraj Kumbh Yatra में इन सातों लोगों का करीब 20 हजार रुपए खर्च हुआ। इसमें मोटरबोट का पेट्रोल खर्च भी शामिल है।
- रास्ते में पेट्रोल खत्म न हो, इसलिए उन्होंने प्लास्टिक कैन में पेट्रोल स्टोर कर लिया।
- रोटेशन में नाव चलाने का सिस्टम बनाया, जिससे किसी को ज्यादा थकान न हो।
- सभी ने पहली बार इतनी लंबी जलयात्रा की, जो उनके लिए यादगार बन गई।
कौन थे ये 7 लोग?
इस समूह में सुमन चौधरी, संदीप, मुन्नू चौधरी, सुखदेव चौधरी, आदू चौधरी, रविंद्र और रमेश चौधरी शामिल हैं। इनमें से मुन्नू चौधरी बलिया से हैं, जबकि बाकी छह बक्सर से ताल्लुक रखते हैं। ये सभी पेशेवर मल्लाह हैं और पारंपरिक रूप से नाव चलाने का काम करते हैं और गंगा नदी के किनारे मछली पकड़ने से लेकर नाव संचालन तक विभिन्न कार्यों में माहिर हैं। स्थानीय मेले और धार्मिक आयोजनों में भी ये अपनी सेवाएं देते हैं।
कैसे तैयार हुई मोटरबोट यात्रा?
जब इन लोगों ने तय किया कि जलमार्ग से प्रयागराज जाएंगे, तो उन्होंने Buxar to Prayagraj Kumbh Yatra के लिए पूरी तैयारी की।
- नाव में दो इंजन लगाए, ताकि एक खराब हो जाए तो दूसरा काम करे।
- 5 किलो का गैस सिलेंडर और चूल्हा रखा, ताकि रास्ते में खाना बनाया जा सके।
- 20 लीटर पेट्रोल साथ रखा और जरूरत पड़ने पर रास्ते में और भी खरीदा।
- खाने के लिए सब्जी, चावल, आटा और ठंड से बचने के लिए रजाई-गद्दे भी ले गए।
- हर वक्त दो लोग नाव चलाते थे और बाकी पांच लोग आराम करते थे, जिससे यात्रा सुचारू रूप से चलती रहे।
संगम से 5 किलोमीटर पहले रोक दी गई मोटरबोट
प्रयागराज में प्रवेश करने से 5 किलोमीटर पहले उनकी मोटरबोट को रोक दिया गया। प्रशासन ने बताया कि आगे पांटून (पीपा) पुल के कारण मोटरबोट आगे नहीं जा सकती। इस समस्या का समाधान उन्होंने ऐसे निकाला:
- नाव को किनारे खड़ा किया।
- वहां से 5-6 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पहुंचे।
- 13 फरवरी को तड़के संगम में आस्था की डुबकी लगाई और पूजा-अर्चना की।
- उसी रात मोटरबोट से वापसी का सफर शुरू कर दिया।
- 14 फरवरी की रात 1 बजे तक सभी लोग सुरक्षित बक्सर लौट आए।
क्यों अनोखी थी यह Kumbh Yatra?
यह Kumbh Yatra न सिर्फ रोमांचक थी, बल्कि श्रद्धा और हिम्मत का अद्भुत उदाहरण भी थी।
- आम श्रद्धालु जहां घंटों जाम में फंसे रहे, वहीं इन 7 लोगों ने जलमार्ग से आरामदायक सफर किया।
- उन्होंने न सिर्फ नया तरीका अपनाया, बल्कि सुरक्षित और किफायती यात्रा भी की।
- इस सफर से यह भी साबित हुआ कि अगर सही योजना बनाई जाए, तो कोई भी बाधा आस्था के मार्ग में रुकावट नहीं बन सकती।
स्थानीय लोग कर रहे तारीफ
इस यात्रा की खबर जब गांवों तक पहुंची, तो लोग हैरान और गर्वित हुए। कई लोगों ने कहा कि अगर प्रशासन इस तरह के वैकल्पिक यात्रा मार्गों पर काम करे, तो भविष्य में कुंभ जैसे आयोजनों में भीड़ प्रबंधन और बेहतर हो सकता है। मुन्नू चौधरी कहते हैं, “यह हमारी पहली लंबी जलयात्रा थी, लेकिन अब हमें अनुभव हो गया है। अगर मौका मिला तो अगली बार भी इसी तरह से जाएंगे।”
आस्था और हिम्मत की मिसाल है अनोखी जलयात्रा
महाकुंभ में उमड़ती भीड़ के बीच बिहार और यूपी के इन 7 लोगों ने पारंपरिक रास्तों की बजाय जलमार्ग से, प्रयागराज पहुंचने का फैसला किया। नाव के जरिए गंगा के पवित्र जल पर यात्रा करते हुए, उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया लेकिन अपनी सूझबूझ और हिम्मत से सफर पूरा किया। लेकिन यह अनूठा प्रयास श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा बन गया। इतिहास में पहले भी कई साधु-संत जलमार्ग से कुंभ में जाते रहे हैं, लेकिन आम लोगों के लिए यह एक नया प्रयोग है। क्या भविष्य में और श्रद्धालु इसे अपनाएंगे? यह देखना रोचक होगा!
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