ट्रंप के टैरिफ वार के बीच US की न्यूक्लीयर कंपनी Holtec ने कर दिया बड़ा खेल, भारत में लगाएगी 200 फैक्ट्रियां
Holtec in India: अमेरिका और भारत के बीच कारोबारी रिश्तों में एक और बड़ा कदम उठने जा रहा है। अमेरिकी परमाणु ऊर्जा कंपनी Holtec International ने भारत में 200 फैक्ट्रियां लगाने का ऐलान किया है। बता दें कि इस घोषणा के पीछे कंपनी का मकसद न सिर्फ भारत में विस्तार करना है, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभुत्व को चुनौती देना भी है।
Holtec in India: भारत में लगेंगी 200 फैक्ट्रियां
खास तौर पर होलटेक का लक्ष्य भारत में 200 छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) इंस्टॉल करने का है। इसके लिए कंपनी भारत की दिग्गज मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ पार्टनरशिप कर रही है। सिंह ने कहा कि योजना के तहत कुछ अहम पार्ट्स अमेरिका में बनाए जाएंगे, जबकि कई बड़े हिस्सों का निर्माण भारत में होगा। इससे न सिर्फ लागत कम होगी, बल्कि भारत की इंडस्ट्री को भी बड़ा फायदा मिलेगा।
होलटेक के संस्थापक और CEO क्रिस सिंह (Chris Singh) ने हाल ही में हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर भारत और अमेरिका मिलकर काम करें तो आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा सेक्टर में चीन को कड़ी टक्कर दी जा सकती है।
‘US Tariff’ बना भारत-अमेरिका साझेदारी में रोड़ा
अमेरिकी कंपनी होलटेक के संस्थापक क्रिस सिंह का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने भारत-अमेरिका न्यूक्लियर पार्टनरशिप की रफ्तार धीमी कर दी है। उनका कहना है कि-
टैरिफ लगाने की वजह से भारत-अमेरिका न्यूक्लियर पार्टनरशिप की रफ्तार धीमी पड़ रही है। इसके अलावाभारत का सिविल न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून अभी तक आसान नहीं हुआ है। अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो निवेशकों को भरोसा दिलाना मुश्किल होगा।
बता दें कि भारत का सिविल न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून भी निवेशकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है, क्योंकि इसके सख्त प्रावधान कंपनियों को जोखिम लेने से रोकते हैं। खास बात यह है कि अगर इस कानून में सुधार होता है, तो न केवल अमेरिकी कंपनियों का भरोसा बढ़ेगा बल्कि भारत को सस्ती और सुरक्षित ऊर्जा उपलब्ध कराने का रास्ता भी साफ होगा। यही वजह है कि विशेषज्ञ लगातार नियमों को सरल बनाने की मांग कर रहे हैं।
अमेरिका को क्यों चाहिए भारत का साथ?
Holtec के संस्थापक क्रिस सिंह का मानना है कि आने वाले सालों में विकासशील देशों में परमाणु ऊर्जा की मांग कई गुना बढ़ जाएगी। अगर कीमतें ज्यादा रहीं, तो ये देश चीन का विकल्प चुन लेंगे। यही कारण है कि अमेरिका को भारत के सहयोग की सख्त जरूरत है। बता दें कि जटिल उपकरण जैसे रिएक्टर और जनरेटर अमेरिका में तैयार होंगे, जबकि सरल पार्ट्स भारत बनाएगा। इस साझेदारी से दोनों देशों को फायदा होगा और चीन से मुकाबला आसान होगा।
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बहरहाल भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील का भविष्य काफी हद तक दोनों देशों की नीतियों पर निर्भर करेगा। अगर अमेरिकी सरकार भारत के लिए नियमों को आसान बनाती है, तो निवेश और तेज़ी से बढ़ सकता है। बता दें कि दुनिया में ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है और क्लीन एनर्जी की ओर झुकाव हो रहा है। ऐसे में अगर दोनों देश मिलकर रणनीति बनाते हैं, तो न्यूक्लियर इंडस्ट्री में नई ऊँचाइयाँ छूना तय है।
इस प्रोजेक्ट से भारत का क्या फायदा?
अमेरिकी कंपनी होलटेक का 200 फैक्ट्रियां लगाने वाला प्रोजेक्ट भारत के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। इससे हजारों नई नौकरियां पैदा होंगी और देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और भी मजबूत होगा। खास बात है कि यह कदम भारत को चीन पर निर्भरता घटाने और खुद को वैश्विक स्तर पर एक न्यूक्लियर मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में मदद करेगा। बता दें कि सरकार पहले से ही ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रही है और यह प्रोजेक्ट उसी दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है।